Poverty गरीबी, लरेंज वक्र, गिनी का गुणांक, Poverty, Lorenz curve, Gini's coefficient

Poverty गरीबी, लरेंज वक्र, गिनी का गुणांक,Poverty, Lorenz curve, Gini's coefficient

गरीबी का आशय वचन से है यदि किसी व्यक्ति को निर्दिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती है तो उसे गरीबी कहेंगे और यह स्थिति गरीबी कहलाती है गरीबी का मापन वर्तमान में दो आधार पर किया जाता है 
१-आधारभूत आवश्यकता के आधार पर 
२-बहुआयामी दृष्टिकोण पर
आधारभूत आवश्यकता के आधार पर गरीबी के मापन में सिर्फ भोजन को ही ध्यान में रखा जाता है। जबकि बहुआयामी दृष्टिकोण के आधार पर भोजन के अलावा अन्य चार चीज़ शिक्षा चिकित्सा आधारभूत संरचना तथा लाभ तक पहुंच आदि को भी ध्यान में रखा गया है। विश्व स्तर पर बहुआयामी दृष्टिकोण के आधार पर गरीबी के मूल्यांकन का रिपोर्ट एचडी तेंदुलकर ने प्रस्तुत की।

गरीबी के मापन के प्रतिमान तरीके हैं
1-सापेक्ष गरीबी, relative poverty
2- निरपेक्ष गरीबी,  Absolute poverty

सापेक्ष गरीबी एक निश्चित आय वर्ग के व्यक्तियों की तुलना दूसरे निश्चित आय वर्ग के व्यक्तियों से की जाए तो इसे सापेक्ष गरीबी कहते हैं क्योंकि अधिक आय वाले व्यक्ति की तुलना में कम आए वाला व्यक्ति सापेक्ष रुप से गरीब होता है सापेक्ष गरीबी से आय की असमानता का पता चलता है सापेक्ष गरीबी के लिए लारेंस ने 1905 में लॉरेंज वक्र से प्रस्तुत किया और गिनी के गुणांक 1912 में प्रस्तुत किया।

लॉरेंज वक्र। Lorenz curve लारेंज ने आय की असमानता को दर्शाने के लिए लारेंज वक्र प्रस्तुत किया इन्होंने इस वक्र को तैयार करने के लिए एक निश्चित आय वर्ग वाले व्यक्तियों का संपूर्ण आय से तुलना करके प्रतिशत तैयार किया। जैसे- देश के 20% व्यक्ति के पास देश की संपूर्ण आय का 10% है अगले 40% व्यक्ति के पास कुल आय का 22% तथा 50% व्यक्ति के पास कुल आय का 29% तथा 90% के पास 70% तथा 100% के पास 100% आए हैं लेकिन इस निश्चित वर्ग वाले व्यक्तियों के आय के निर्धारण में सबसे कम आय वर्ग नीचे रहेगा। तथा सबसे अधिक आय वर्ग ऊपर रहेगा अतः आय वर्ग बढ़ते हुए क्रम में रखना चाहिए। यदि समाज के 10% व्यक्तियों के पास कुल आय का 10% हो तथा 20% व्यक्ति के पास आय का 20% और 100% व्यक्ति के पास 100% आए हो वह समाज पूर्ण समानता वाला होगा।  ग्राफ पर जो रेखा होगी वह पूर्णता होगी जो 45 डिग्री के कोण पर होगी।

लारेंस ने X अक्ष पराए प्राप्त करता हूं का संचई प्रतिशत रखा और वाई अक्ष पर कुल आय का संचई प्रतिशत दर्शाया और दोनों के बीच 45 अंश का कोण बनाते हुए एक रेखा भी दर्शाई जिसे उन्होंने पूर्ण समानता रेखा कहा जिसे उन्होंने निरपेक्ष समानता रेखा भी कहा वास्तव में यह एक काल्पनिक रेखा है। अब उन्होंने वास्तविक आंकड़ों के आधार पर समाज की असमानता को दर्शाया।

 लोरेंज वक्र पूर्ण समता रेखा से जितना अधिक दूर होगा समाज में आए क्या समानता उतनी अधिक होगी। और लारेंस बाकरपुर समानता रेखा के जितना नजदीक होगा समाज में आए क्या समानता उतनी कम होगी यदि यदि लॉरेंज वक्र पूर्ण समानता रेखा वक्र पर ही बन जाए तो समाज पूर्ण समानता रेखा पर होगा यदि कोई भी च नकारात्मक ना हो तो निम्न निष्कर्ष प्राप्त होंगे।
लारेंस बाकरपुर समानता रेखा से कभी ऊपर नहीं जाएगा लॉरेंज वक्र पूर्ण समानता रेखा से कभी ऊपर ।नहीं जाएगा लारेंज वर्क सदैव उत्तल बनेगा।
गिनी का गुणांक, Gini's coefficient
लॉरेंज वक्र के आधार पर गिनी के एक गुणांक विकसित किया जिसे गिनी गुणांक कहते हैं। उन्होंने बताया कि यदि पूर्ण क्षमता रेखा के मेला रेंज बकर तक का क्षेत्रफल क्षमता रेखा से लारेंज वक्र का क्षेत्रफल अनुपात निकाल लेंगे तो गिनी का गुणांक प्राप्त होगा। जिससे सामान समाज की आए की असमानता का प्रतीक वर्गों के बीच समानता प्रत्येक वर्गों के बीच का पता चलता है
गिनी का गुणांक = क्षमता रेखा से लॉरेंज वक्र तक का क्षेत्रफल बटे पूर्ण क्षमता से पूर्ण क्षमता रेखा तक का क्षेत्रफल।

यदि लारेंज वक्र पर क्षमता रेखा पर ही गुजरे तो जी बराबर 0  10 और यदि संपूर्ण आए एक ही व्यक्ति के पास हो तो समाज में पूरा समानता आएगी। आता गिनी का गुणांक सदैव 0-  1 के बीच आएगा जैसे 0 से 1 के बीच होगा जैसे गिन्नी का गुणांक का मान ० से 1 के बीच बढ़ता जाता है वैसे ही समाज में आज आय की असमानता बढ़ती जाती है। 
निरपेक्ष गरीबी , Absolute poverty
निरपेक्ष गरीबी के मापन में सर्वप्रथम गरीबी रेखा का मानक तैयार करते हैं जिसे निरपेक्ष गरीबी कहते हैं इस मानक में एक निश्चित आय दर्शाई जाती है इस निश्चित आय से कोई व्यक्ति कम या आए पा रहा है तो वह गरीब कहलाता है इस प्रकार मापक रेखा तैयार करके गरीबों की संख्या गिनना ही निरपेक्ष गरीबी कहलाती है इस आधार से गरीबी का मापन करने में गरीबी रेखा के नीचे वाले व्यक्तियों की संख्या गिनी जाती है जिसे सिर गणना विधि या हेड अकाउंट में थर्ड कहते हैं जैसे यदि मान लिया जाए कि ₹500 प्रति माह आय की मानक रेखा है तो निम्नलिखित जनसंख्या में कौन-कौन निरपेक्ष गरीबी में आएगा इस मानक रेखा से वास्तव में यह पता नहीं चल पाता है कि कोई गरीब ठीक-ठीक कितना गरीब है सिर्फ यह पता चलता है कि वह गरीब है इस कमी को दूर करने के लिए प्रोफेसर एके सेन ने एक एक विधि विकसित की जिसे सेन का निर्देशक गुणांक कहते हैं

सेन का निर्देशक , Sen's director
सेन ने जो निर्देशांक विकसित किया उससे गरीबी की गहनता का पता चलता है सेन ने निर्देशांक विकसित करने के लिए गरीबों की आय का मानक गरीबी रेखा से भरा अंकन किया घर आंगन को दर्शाने के लिए उन्होंने गरीबी रेखा से आय की गिरावट को दर्ज किया, जिस गरीब के आय के गिरावट गरीबी रेखा के अत्यंत कम है उसे भार अंकन एक दिया गया थोड़ा गरीब व्यक्ति को जिसे आए की गिरावट थोड़ा इससे भी अधिक थी। उसके भार का भार अंकन दो किया इसी प्रकार क्रमशः अंतिम गरीब व्यक्ति तक भार का अंकन किया जिसे जैसे यदि मानक रेखा यदि मानक रेखा ₹700 प्रतिमाह है तो आय गरीबी रेखा होगी जिस गरीब व्यक्ति की आय ₹699 प्रतिमा है उसकी गरीबी रेखा में गिरावट एक रुपए है। इस प्रकार उससे थोड़ा अधिक गरीब व्यक्ति जिसका मासिक आय ₹698 है। तो इसका भार अंकन दो होगा इसी प्रकार क्रमशः सबसे अंतिम गरीब व्यक्ति के भार अंकन का अंकन 3:00 रखा गया है। अतः इस प्रकार जो निर्देशांक विकसित होता है उसे सेन का निर्देशक कहते हैं।




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