तारे का जन्म तथा विकास, Origin and Development of Star
तारेे का जीवनकाल अत्यधिक लंबा होता है यदि हम अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी के तारों की विभिन्न अवस्थाओं का निरीक्षण करें तो तारे के जीवन चक्र को समझा जा सकता है तारे की जीवन चक्र को सामान्य रूप से अधोलिखित अवस्था में रखा जाता है जैसे
गैस मेघ Gas Cloud
किसी तारे का जीवन आकाशगंगा की तीसरी भुजा में हाइड्रोजन एवं हीलियम के बादलों के बनने से शुरू होता है इनमें उनको इस ट्रेलर नेबला कहते हैं।
आदि तारा प्रोटोस्टार Protostar
जब आकाशगंगा में हाइड्रोजन का बादल काफी बड़ा होता है तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से कैसे पेंट सिकुड़ने लगता है तब यह आदि तारा कहलाता है इसका केंद्र सघन होता है इसलिए इसे भ्रूण तारा एंब्रियो स्टार भी कहते हैं।
तारा Star
आदि तारा की सिकुड़ने पर गैस के बादलों में परमाणु की परस्पर टक्कर ओं की संख्या बढ़ जाती है सिकुड़न की प्रक्रिया एक अरब वर्ष तक चलती है तथा आंतरिक ताप अपरिमित रूप से बढ़ जाता है। फलता हाइड्रोजन में से हीलियम के नाभिक बनने लगते हैं इससे सीमित मात्रा में विकिरण ऊर्जा मुक्त होती है। इससे अंदर का दाग ताप और बढ़ जाता है यह अवस्था तारा की संज्ञा से जाना जाता है। तारा अपने द्रव्यमान के अनुरूप छोटे औसत या भारी होते हैं। इस स्थिति में आने के बाद तारा अपना जीवन आरंभ करता है। तारा के अंदर ही अंदर डाल के अधिक बढ़ने से गैस या पदार्थों का और अधिक केंद्रीय करण रुक जाता है तारों में गुरुत्वाकर्षण बल संपीड़न उत्पन्न करता है। तथा दूसरा बल संलयन अभिक्रिया द्वारा मुक्त ऊर्जा के कारण उत्पन्न आंतरिक दबाव के कारण होता है इन दोनों दलों में हजारों अरबों वर्ष तक संतुलन बना रह सकता है यदि संलयन में मुक्त ऊर्जा के कारण आंतरिक दबाव उत्पन्न ना होता तो विशाल गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव के कारण तारा या सूर्य अपनी उत्पत्ति के आधे घंटे के अंदर ही सिकुड़ जाता सूर्य अपने विकास के संतुलन चरण में है तारों की बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका जीवन चक्र उस में विद्यमान द्रव्य राशि में निर्धारित होता है।
रक्त-दानव Red Giant
जैसे जैसे तारे कि केंद्र में नाभिकीय संलयन न्यूक्लियर फ्यूजन अभिक्रियाएं होती जाती हैं। उसका हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तित हो जाता है। अतः कुछ समय पश्चात उसके करोड में हिलियम की प्रधानता हो जाती है तथा नाभिकीय संलयन अभिक्रिया ए रुक जाती हैं। इससे करोड में दबाव कम हो जाता है तथा तारा सिकुड़ने लगता है। परंतु तारे कि वह कवच की हाइड्रोजन हीलियम में सम्मिलि होने लगती है और ऊर्जा अभिकरण की तीव्रता घट जाती है। इस अवस्था के तारे को लाल दानव तारा कहते हैं क्योंकि इसका रंग बदल कर लाल हो जाता है,
लाल दानव चरण में पहुंचने पर तारे का भविष्य उसके प्रारंभिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय मूल के अमेरिकी गूगल भौतिक एस चंद्रशेखर ने के अनुसार 1.44 और द्रव्यमान की स्वीट बोने वाइट ड्राफ्ट के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा है इसे चंद्रशेखर सीमा भी कहते हैं। अर्थात यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से कम अथवा बराबर चंद्रशेखर सीमा है। तो वह लाल दानव से श्वेत वामन और अनंत अंत तक काला बना ब्लैक द्वार में परिवर्तित हो जाता है। और यदि तारे का द्रव्यमान सूर्य से अधिक किया कई गुना अधिक है तो द्रव्यमान के अनुरूप सुपरनोवा विस्फोट के बाद न्यूट्रांता अथवा ब्लैक होल में रूपांतरित हो जाता है।
श्वेत वामन White Dwarf
जब लाल दानों का द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान के बराबर अथवा कम होता है। तो उसका व्हाई कवच प्रसारित होकर अंततः लुप्त हो जाता है बचा हुआ करोड धीरे-धीरे संकुचित होकर अत्यधिक घनत्व के द्रव्य के गोले के रूप में बचा रहता है। इसके परिणाम स्वरूप अंतरंग का ताप अत्यधिक बढ़ जाता है। जिससे हीलियम के नाभिक संगीत होकर कार्बन जैसे तत्वों में परिवर्तित होने लगते हैं। एलियन के संलयन के परिणाम स्वरुप मुक्त कम ऊर्जा के कारण यह करोड किसी श्वेत वामन के सम्मानित हो जाता है। यह तब तक दीप्त रहेगा जब तक उसकी समस्त हीलियम उच्च द्रव्यमान के नाभिक में परिवर्तित नहीं हो जाती ज्ञातव्य है कि सूर्य के बराबर द्रव्यमान वाला श्वेत वामन का व्यास सूर्य के व्यास का 1% होता होगा अर्थात लगभग पृथ्वी के आकार के बराबर होगा ज्ञातव्य है कि श्वेत वामन की संरचना का पता सर्वप्रथम आर एच फाऊबर द्वारा लगाया गया था।
काला बौना Black Dwarf
श्वेत वामन तारा एक जीवाश्म तारा होता है। जब श्वेत वामन के करोड का हीलियम धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। तो वह ऊर्जा एवं प्रकाश का उत्सर्जन नहीं करता और शीतल होकर सघन काला बोना तारा हो जाता है अर्थात श्वेत वामन धीरे-धीरे काला बामन बनकर लुप्त हो जाता है। ज्ञातव्य है कि काला बना कृष्ण विवर या काले चित्र ब्लैक होल से भिन्न है वह तारे जिनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान चंद्रशेखर सीमा 1.4 से कई गुना अधिक होकर होता है। उनका अंत अधिक प्रलय कारी होता है ऐसे तारे द्रव्यमान की अधिकता के अनुरूप सुपरनोवा या न्यूट्रांता रा अथवा कृष्ण विवर की अवस्थाओं से गुजरते हैं किसी ग्रह तारे से उक्त अवस्थाओं क्रमिक रूप में पाई जा सकती हैं।
सुपरनोवा Supernova
ऐसे तारे जो सूर्य से कई गुना द्रव्यमान में भारी और रक्तदान और अवस्था को प्राप्त होते हैं उनका करोड अत्यधिक गुरुत्व के कारण सिकुड़ता जाता है और तापमान में वृद्धि से करोड़ का हीलियम कार्बन में परिवर्तित हो जाता है। यह कार्बन क्रमशः भारी पदार्थों जैसे लोहे में परिवर्तित होता रहता है अंत में तारे का केंद्र लोहे से युक्त हो जाता है जिसके फलस्वरूप केंद्र में नाभिकीय संलयन की क्रिया रुक जाती है। इसके परिणाम स्वरूप तारे की मध्यवर्ती परत गुरुत्वाकर्षण के कारण तारे के केंद्र पर ध्वस्त हो जाती है इससे निकली ऊर्जा तारे की ऊपरी परत को उड़ा देती है। यह ब्रह्मांड का भयानक विस्फोट माना जाता है इसी सुपरनोवा विस्फोट कहा जाता है थोड़े समय के लिए एक सुपरनोवा तारा इतना चमकीला हो जाता है। जितनी संपूर्ण आकाशगंगा सुपरनोवा विस्फोट के पश्चात सुपरनोवा से प्रभात लहरें तथा गैसों के मेघ निकलते हैं इस जैसे बादल से तारों की एक नई पीढ़ी का सृजन होता है।
न्यूट्रॉन तारा Neutron Star
जब कोई विशाल तारा अपनी अंतिम अवस्था में पहुंच जाता है तो उसे सुपरनोवा विस्फोट होता है इस विस्फोट से बचे हुए केंद्रीय भाग से जो कि अत्यधिक घनत्व एवं कुल कुछ मील व्यास का होता है न्यूट्रॉन तारों का निर्माण होता है न्यूट्रांनतारा की सभी चीजें न्यूट्रॉन के रूप में संगठित रहती हैं। यह अपने अक्ष पर एक सेकंड में 30 * * करता है तथा तीव्र रेडियो तरंगे विसर्जित करता है रेडियो तरंगों का सकेंद्र चुंबकीय ध्रुव पर सर्वाधिक होता है। इस तारे का पता सर्वप्रथम 1967 में जो क्लीन बेल ने लगाया कुछ खगोल भौतिक विधु ने न्यूट्रॉन की द्वारा स्पंदन शील रेडियो तरंगे विसर्जित होने के कारण न्यूट्रांता रा क पल्सर की संज्ञा प्रदान की।
कृष्ण विबर Black Hole
न्यूट्रॉन रेखा अपरिमित द्रव्यमान अंततः एक ही बिंदु पर केंद्रित हो जाता है। ऐसे अश्मित घनत्व के द्वार द्रव्य युक्त पिंड को कृष्ण विवर कहते हैं। दूसरे शब्दों में वृहद संकुचित तारे जो कि अदृश्य हो जाते हैं कृष्ण विवर कहलाते हैं इसकी गुरुत्व शक्ति इतनी अधिक होती है कि इससे प्रकाश का भी पलायन नहीं हो सकता ब्लैक होल का निर्माण भी घटित तारे के क्रोड में निहित द्रव्यमान पर निर्भर करता है। जिसे तारों का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के तीन गुणों से कम होता है वह विघटित होकर न्यूट्रांता रे में परिवर्तित हो जाते हैं। किंतु जिन तारों का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 3 गुने से अधिक होते हैं वे विघटित होकर अंततः कृष्ण विवर में परिणित हो जाते हैं ने 1650 से 500 हाल में ही खोजा गया यह सबसे छोटा और सबसे प्रकाशमान ब्लैक होल है।
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