भारत में निरपेक्ष गरीबी, भारत में गरीबी का मापन, Poverty of India

भारत में निरपेक्ष गरीबी, भारत में गरीबी का मापन

भारत में निरपेक्ष गरीबी
भारत में गरीबी का मापन
भारत में गरीबी का मापन का आधार निरपेक्ष गरीबी विधि है। निरपेक्ष गरीबी रेखा का मूल्यांकन करने के लिए निम्नलिखित दो बिंदुओं को ध्यान में रखा जाता है।
प्रथम चरण में न्यूनतम पोषण स्तर का निर्धारण करते हैं।इस न्यूनतम पोषाहार अस्तर की लागत मूल्य का निर्धारण करते हैं। अब जो लागत मूल्य निकलकर आएगी उसे ही गरीबी रेखा मान लेंगे।
भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण और गरीबों की संख्या का निर्धारण कई संस्थाओं द्वारा किया जाता है लेकिन योजना आयोग की ही निर्धारण को भारत में मारा जाता है।

सर्वप्रथम योजना आयोग ने गरीबी के निर्धारण के लिए 1962 में एक कार्य दल गठित किया इस कार्य दल ने अपनी रिपोर्ट 1960 से 1961 के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। इस कार्य दल की तीव्र आलोचना हुई, क्योंकि इसने बिना किसी आधार के ही गरीबी रेखा का मूल्यांकन किया था। और इतना ही नहीं शहरी एवं ग्रामीण गरीबी की रेखा भी एक ही रखी थी आगे चलकर सन 1977 में योजना आयोग ने एक विशेष कार्य दल गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए गठित किया इस कार्य दल ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट एवं कई अन्य संस्थाओं की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसे उन्होंने गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए 2435 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए 2095 कैलोरी प्रतिदिन कोई मानक माना अतः सर्वप्रथम कैलोरी आधारित गरीबी रेखा का निर्धारण 1977 में प्रस्तुत हुई इस आधार पर गरीबी रेखा के मापन को भोजन ऊर्जा विधि कहते हैं।

डी टी लकड़ावाला समिति 1989=
योजना आयोग ने सन 1989 में प्रोफेसर डीटी लकड़वाला की अध्यक्षता में गरीबी रेखा के माध्यम मापन के लिए समिति का गठन किया इस समिति ने अपना रिपोर्ट 1993 में प्रस्तुत की इस समिति ने निम्नलिखित बिंदुओं पर सुझाव दिए।
उन्होंने बताया कि प्रत्येक राज्य में मूल्य का स्तर असमान है अतः प्रत्येक राज्य के मूल्य स्तर के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाना चाहिए इस प्रकार उन्होंने कुल 35 गरीबी रेखा 28 राज्य और 7 संघ शासित प्रदेश का निर्धारण किया गया।
इन्होंने प्रत्येक राज्य में गरीबों के लिए अलग गरीबी रेखा तथा शहरी क्षेत्र के लिए अलग सारी रेखा का निर्धारण किया।
इस रिपोर्ट का योजना आयोग ने गरीबी के मूल्यांकन के लिए आठवीं पंचवर्षीय योजना से लागू कर दिया अभी ।तक भारत की एक ही गरीबी रेखा यूनिक पॉवर्टी लाइन UPL विशिष्ट गरीबी रेखा थी। जिसमें गांव के लिए अलग गरीबी रेखा थी। और शहरी क्षेत्रों के लिए अलग थी। लेकिन अब प्रत्येक राज्य के ग्रामीण क्षेत्र एवं शहरी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग गरीबी रेखा का निर्धारण किया जा रहा है। अतः अब राज्य विशिष्ट गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है। जिसमें प्रत्येक राज्यों की गरीबी रेखा अलग-अलग होती है जैसे नागालैंड की गरीबी रेखा 1270 रुपए व्यक्ति वर्ष प्रतिमा है। जबकि उड़ीसा में ₹695 प्रति व्यक्ति प्रति माह है।

सुरेश तेंदुलकर समिति 2009=
योजना आयोग ने एस डी तेंदुलकर की अध्यक्षता में गरीबी निर्धारण की विधि निर्धारित करने के लिए एक समिति का गठन किया। समिति ने अपना रिपोर्ट 2009 में प्रस्तुत की तेंदुलकर ने कहा कि गरीबी निर्धारण की जो कैलोरी आधारित विधि भोजन ऊर्जा प्रणाली है। वह परंपरागत विधि है और पुरानी हो चुकी है वर्तमान परिदृश्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन स्तर बदल चुका है, और गरीबी मापन की जो जीवन का आधार माना जाता था उसकी जगह जीवन की गुणवत्ता को आधार माना जाता है। अर्थात व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को आधार कर कैलोरी के अतिरिक्त अन्य घरों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए क्योंकि व्यक्ति का भोजन के अलावा शिक्षा स्वास्थ्य आदि पर भी व्यय होता है जो पहले राज्य काव्य माना जाता था अतः इनने गरीबी के मापन की बहुआयामी दृष्टिकोण को विकसित किया।

बहुआयामी दृष्टिकोण
इस दृष्टिकोण में भोजन के अलावा गरीबी रेखा के निर्धारण करने में कैलोरी के अलावा छह अन्य चारों को भी रखा गया है।
शिक्षा चिकित्सा बुनियादी संरचना आधारभूत संरचना स्त्रियों की काम तक पहुंच लाभ तक पहुंच स्वच्छ वातावरण इन की रिपोर्ट के आधार पर योजना आयोग 11वीं पंचवर्षीय योजना से निर्धारण कर रहा था।
 प्रत्येक 5 वर्ष पर एन एस एस ओ गरीबी का सर्वेक्षण करता है यह घरेलू उपभोग व्यय से तात्पर्य एक परिवार द्वारा प्रतिमाह किए जाने वाला वह है।
जैसे यदि परिवार में 3 सदस्य हैं और इनकी प्रतिमाह ₹45 है तो प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय 15 सो रुपए में होगा यदि गरीबी रेखा पंद्रह ₹100 से कम है तो वह परिवार गरीब नहीं है, और यदि गरीबी रेखा 15 सौ से अधिक है तो वह परिवार गरीब है अतः योजना आयोग प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के आधार पर गरीबी का मूल्यांकन करता है NSSO के 61 में चक्र 2005 के सर्वेक्षण के आधार पर गरीबी का निर्धारण तेंदुलकर ने वर्ष 2005 की भारत की गरीबी निर्धारित की और बताया कि वर्ष 2005 में कुल गरीबी 37.2% थी। ओके क्षण के आधार पर 2011 से 2012 में भारत में गरीबी 10% निर्धारित की गई। यह गरीबी सुरेश तेंदुलकर के रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया इसमें ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी 25.7% तथा शहरी क्षेत्र में 7% ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी रेखा 816 गई। और शहरी क्षेत्र के लिए गरीबी रेखा ₹1000 प्रति व्यक्ति प्रति माह दर्शाई गई सर्वाधिक गरीबी अनुपात वाला छत्तीसगढ़ 39% झारखंड गरीबी अनुपात गोवा सबसे कम गरीबी अनुपात अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 1%।
सर्वाधिक गरीबी की संख्या वाला राज्य क्रम से उत्तर प्रदेश बिहार है।
सर्वाधिक उपभोग पर व्यय करने वाला राज्य नागालैंड उपभोग व्यय 1270 प्रतिमाह, न्यूनतम उपभोग व्यक्ति प्रति व्यक्ति प्रति माह  वाला राज्य उड़ीसा ₹695 प्रतिमा है।

सी रंगराजन समिति 2014
तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सन 2011 से 2012 में भारत की संपूर्ण गरीबी अनुपात 21.9% आई जो 2004 से 2005 में 37% थी इतनी तेजी से निर्धनता में कमी आने पर कई अर्थशास्त्रियों ने इस रिपोर्ट पर प्रश्नचिन्ह लगाए जिस को ध्यान में रखकर योजना आयोग ने सन 2012 में सी रंगराजन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की इस समिति ने अपनी रिपोर्ट 2014 में प्रस्तुत की उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी रेखा ₹816 के स्थान पर₹816 के स्थान पर ₹972 प्रति व्यक्ति प्रति माह निर्धारित किए यह गरीबी रेखा वर्ष 2011 से 2012 के बीच थी इस आधार पर वर्ष 2011 में गरीबी अनुपात 21.9% से बढ़कर 29.5% हो गया।

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