National income, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय आय की गणना|| Calculation of National Income

National income, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय आय की गणना|| Calculation of National Income

राष्ट्रीय आय-
 किसी एक निशित समयावधि में लगभग एक वर्ष में उत्पादित समस्त वस्तुओ एवं सेवाओं का अंतिम मूल्य का योग ही राष्ट्रीय आय कहलाता है। यदि गणना किशी देश के परिपेक्ष में की जाए तो इसे राष्ट्रीय आय कहते है। अतः राष्ट्रीय आय एक प्रवाह है न की संग्रह । है

जैसे किसी राष्ट्र की संपूर्ण भूमि वस्तु विनियोग चल अचल संपत्ति का मूल्य राष्ट्र की संपत्ति का मूल्य राष्ट्र की संपत्ति कहलाती है। ना कि आई कहलाती है। जबकि लगभग 1 वर्ष में उस देश में उत्पादित समस्त वस्तुओं का अंतिम एवं सेवाओं के अंतिम मूल्य का योग ही राष्ट्रीय आय कहलाता है।

अंतिम मूल्य का तात्पर्य है।

उदाहरण के लिए यदि हम बाजार से आलू खरीद कर खा लेते हैं। तो वह उसका अंतिम मूल्य होता है लेकिन यदि कोई व्यापारी आलू को खरीद कर चिप्स बना कर बाजार में भेजता है। तो उसका अंतिम मूल्य आलू नहीं होगा बल्कि चिप्स होगा। वहां पर आलू का मूल्य प्राथमिक मूल्य होगा।

राष्ट्रीय आय मापने से संबंधित अवधारणाएं

इसकी निम्न धारणाएं हैं

1- सकल घरेलू उत्पाद ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट भूभाग भारत में उत्पादित समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं का अंतिम मूल्य का योग को सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है।जो साधारणतया एक निश्चित अवधि में लगभग 1 वर्ष के अंदर की गई होती है की माफी होती है। उदाहरण के लिए भारत भूमि के अंदर 1 वर्ष के अंतर्गत उत्पादित समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं का अंतिम मूल्य जीडीपी सकल घरेलू उत्पाद कहलाएगा। भले ही इस उत्पाद में विदेशी भागीदार क्यों ना हो।

1-किसी देश के समस्त नागरिकों द्वारा 1 वर्ष की अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुएं एवं सेवाओं का अंतिम मूल्य का योग सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है। अतः जीएनपी की गणना करने से करने में किसी देश के अंदर कोई विदेशी की जितनी आए है। उसको घटा देते हैं तथा उस देश का कोई नागरिक देश के बाहर आयोजित कर रहे हो तो वह आए जोड़ देते हैं। तो परिणामी समस्त मूल्य उस देश का सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद में से विदेशियों द्वारा अर्जित आय घटा देने पर तथा देश के वे नागरिक जो विदेश से आयोजित करते हैं। उसे जोड़ देने से प्राप्त आय सकल राष्ट्रीय आय  कहलाती  है।

राष्ट्रीय आय की गणना  How to calculate National Income

साइमन कंजूनेट्स ने राष्ट्रिय आय की गणना के लिए तीन प्रणाली का उपयोग किया था जी निम्न्लिखित है
1- उत्पादन की विधि या मूल्य वर्धन विधि
2- आय विधि
3- व्यय विधि
1- उत्पादन विधि - इसे वस्तु सेवा विधि नामे से भी जाना जाता है। इस विधि ले किशि देस की राष्ट्रिय आय की गणना करने के लिए उस देश डीएस समस्त नागरिकों द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओ अवन सेवाओ के अंतिम मूल्य डीके योग निकाला जाता है। इस आधार पीआर किशि देश की समस्त राष्ट्रिय आय का पता चल जाता है। इस आधार पर दिशि देश दी समस्त राष्ट्रिय आय का पता चल जाता है। (लागभग एक वर्ष तक का
2- आय विधि - इस विधि से किसी देश की राष्ट्रिय आय की गणना करने के लिए इस देश के समस्त नागरिकों एवं व्यापारिक उपक्रमो ( उदयोग कारखाने ) की आय का मूल्याकन कर लेते हैं। जिससे किशि देश की समस्त राष्ट्रिय आय का पता चलता है।
3- व्यय विधि - किशि भी देश के समस्त नागरिकों की आय या तो उपयोग पर व्यय होती होगी या बचत पर व्यय होती होंगी अतः किशि देश केएस समस्त नगरीलों द्वारा किया जाने वाला सम्पूर्ण उपयोग व्यय अवन बचत को जोड़कर इस देश की राष्ट्रिय आय का अनुमान लगाया जा सकता है।
भारत मे राष्ट्रिय आय का मूल्यांकन "उत्पादित विधि ऐवान आय विधि का प्रयोग करके गणना की जाती है।
* भारत मे राष्ट्रिय आय का मूल्यांकन सीएसओ द्वारा किया जाता है |

C.S.O.( Central statics organizations)केन्द्रीय संखिकीय संगठन - ईशिकी स्थापना 1951 मे की गयी भारत मे राष्ट्रिय आय का मूल्यांकन सीएसओ द्वारा ही किया जाता है। जो न्स्सो के आंकड़ो का सहारा लेकर पूरा करता है इसका मुख्यालय नयी दिल्ली मे है।

राष्ट्रिय आय की गाड़ना का इतिहास - भारत मे सर्वप्रथम राष्ट्रिय आय का अनुमान दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक (The poverty and unbritish Rule of India ) मे विकाश सिधान्त (ड्रेन थिओरी ) द्वारा किया इस समय भारत मे प्रति व्यक्ति आय 20 रुपये थी। आगे चलकर 1925 मे डॉक्टर विलकेशव राव ने 76 रुपये प्रति व्यक्ति वार्षिक आय निर्धारित किए।

भारत आजादी के बाद 1949 मे राष्ट्रिय आय समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष पीसी महाननोवलिश थे। इस समिति का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रिय आय का मिल्यांकन करना था। अतः इस समिति ने वर्ष 1947 के आधार पर राष्ट्रिय आय का मूल्यांकन किया उस समय प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 2469 रुपये निर्धारित किया। गया तथा लगभग 2600 कारॉन रुपये राष्ट्रिय आय मूल्यांकित की गयी 1954 मे इस समिति ने राष्ट्रिय आय का मूल्यांकन सीएसओ ने संभाला है |

क्षेत्रक sector-- : संपूर्ण अर्थव्यवस्था को तीन छात्र में बांट दिया गया है जो निम्नलिखित है।

1- प्राथमिक क्षेत्र-- इस क्षेत्र में उत्पादन के वे विषय शामिल होते हैं। जो मूल रूप से प्रथम बार उत्पादन करते हैं उदाहरण के लिए कृषि ,वन, खनिज, खनन पशुपालन, मत्स्य पालन, समुद्री उत्पाद इत्यादि।

2- द्वितीयक क्षेत्र- प्राथमिक क्षेत्र की वस्तुओं का उपयोग करके नए उत्पाद को निर्मित करना द्वितीय क्षेत्र में आता है। अतः इस क्षेत्र में उद्योग से जुड़े समस्त विषय आएंगे।

उदाहरण निर्माण विनिमय विद्युत विद्युत वितरण गैस एवं जलापूर्ति इत्यादि।

3- तृतीय क्षेत्र- इससे सेवा क्षेत्र भी कहते हैं वह क्षेत्र जहां आए के उत्पादन में सेवा का अधिक योगदान होता है तृतीय क्षेत्र में आता है।

उदाहरण संचार परिवहन व्यापार होटल चिकित्सालय एवं प्रशासन इत्यादि।

राष्ट्रीय आय के उत्पादन में इन तीन क्षेत्रों का योगदान अलग अलग है। भारत की आजादी के बाद प्राथमिक क्षेत्र का योगदान लगभग 55% द्वितीय क्षेत्र का योगदान 13% तथा तृतीय क्षेत्र का योगदान लगभग 29% था।अतः उस समय राष्ट्रीय आय में सबसे अधिक योगदान प्राथमिक क्षेत्र का था।

जबकि वर्तमान में राष्ट्रीय आय के उत्पादन में प्राथमिक क्षेत्रों का योगदान घटकर 13% द्वितीय क्षेत्र का योगदान 27% और तृतीय क्षेत्र का योगदान बढ़कर 58% हो गया है। अर्थात वर्तमान में राष्ट्रीय आय में सबसे अधिक योगदान तृतीय क्षेत्र का है। किसी भी विकसित अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान एकदम न्यूनतम रहता है लगभग 10% से कम।

आर्थिक समृद्धि- किसी देश के आर्थिक समृद्धि का वास्तविक अनुमान उस देश के प्रति व्यक्ति आय से पता चलता है।

प्रति व्यक्ति आय = राष्ट्रीय आय/कुल जनसंख्या

* 1956 में सीएसओ ने श्वेत पत्र जारी किया।

* सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाला संघ शासित राज्य नई दिल्ली है ।

*जबकि राज्यों में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य गोवा है।

* सबसे कम प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य बिहार तथा यूपी है ।

*सकल (निवल शुद्ध) घरेलू उत्पाद में प्रथम स्थान पर आंध्रप्रदेश है।

सतत विकास या समावेशी विकास sustainable development


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