1857 की क्रांति तथा इसके प्रमुख कारण और परिणाम, 1857 Revolution and their Concluse

1857 की क्रांति तथा इसके प्रमुख कारण और परिणाम, 1857 Revolution and their Concluse

1857 में उत्तरी और मध्य भारत में एक शक्तिशाली जन विद्रोह उठ खड़ा हुआ। और उसने ब्रिटिश शासन की जोड़ी तक हिला कर रख दिया। इसका आरंभ तो कंपनी की सेना के भारतीय सिपाहियों से हुआ परंतु जल्द ही एक व्यापक क्षेत्र के लोग भी इसमें शामिल हो गए लाखों लाख किसान दस्तकार तथा सिपाही 1 साल से अधिक समय तक बहादुरी से लड़ते रहे और अपनी मिशाली वीरता और बलिदान से उन्होंने भारतीय जनता के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।

विद्रोह का कारण
इस विद्रोह के अनेक प्रशासनिक आर्थिक सामाजिक धार्मिक एवं राजनीतिक कारण थे।
राजनीतिक कारण
अट्ठारह सौ सत्तावन के राजनीतिक में सबसे विशेष लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति मुख्य कारण थी। लॉर्ड डलहौजी इस नीति के तहत ज्यादातर राज्यों को ब्रिटिश राज्य में मिला लेता था। देसी नरेश ओं तथा राजाओं को संतान गोद लेने का अधिकार नहीं था। यदि कोई राजा निसंतान मर जाता था तो उसके रियासत अपने आप ही कंपनी के अधिकार में चली जाती थी। अंग्रेजी शासन से वे हजारों कर्मचारी भी असंतुष्ट थे। जिन्हें बिना कारण ही नौकरी से निकाल दिया गया था क्योंकि उन राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया था जिससे वे कार्यरत थे।
धार्मिक कारण
1813 ई मैं ईसाइयों को भारत आने की अनुमति नहीं थी। लेकिन इसी वर्ष कंपनी ने उन्हें भारत आने की अनुमति दी अतः बड़ी संख्या में ईसाइयों का भारत में आगमन शुरू हुआ इसका मुख्य उद्देश्य भारत में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार करना था। भारतीयों को कई तरह से इनका भारत आगमन पसंद नहीं आया।
ईसाई धर्म के प्रचार को ने हिंदू व मुसलमान धर्म की निंदा की थी।
ईसाई लोगों ने भारतीयों को ईसाई बनने की मुहिम चला दी।
अंग्रेज भी भारतीयों को पद धन सम्मान का लालच देकर ईसाई बनने की प्रेरणा देने लगे।
अंग्रेजों ने भारतीय समाज सुधार के लिए कुछ कानून भी बनाए जैसे सती प्रथा का अंत विलियम बैटिंग विधवा विवाह लॉर्ड कर्जन धर्म परिवर्तन की कानून सुविधा आदि।
लेकिन भारतीय इन नियमों को आशंका की दृष्टि से देखते थे उन्हें लगता था, कि अंग्रेज भारत के धर्म व समाज दोनों को मिटाना चाहते हैं इससे भी भारतीय समाज में अंग्रेजों के प्रति असंतोष था।
सामाजिक कारण
अंग्रेज उस समय अपनी जाति नस्ल व वंश को विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रकार मानते थे।
भारतीयों के प्रति उनका व्यवहार अमानवीय था।
प्रथम श्रेणी की रेल यात्रा भारतीयों के लिए नहीं थी।
भारतीय अंग्रेजों के साथ ना तो बैठ सकते थे ना ही किसी उत्सव आय में भाग ले सकते थे।
यूरोपियन व्यापारियों द्वारा संचालित होटल पर एवं क्लबों में भारतीयों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी।
अंग्रेज न्यायाधीश पक्षपात पूर्ण निर्णय देते थे जिससे भारतीय काफी गुस्से तथा नफरत का रवैया अपना रहे थे ।यही असंतोष 1857 के विद्रोह में एक मुख्य कारण की भूमिका में है।
आर्थिक कारण
गरीब किसान ब्रिटिश सरकार के द्वारा लिए जाने वाले भारी कर से परेशान थे
अंग्रेजों की आर्थिक नीति के कारण जमीदार ताल्लुक केदार किसान मध्यवर्ग मजदूर उद्योगपति और व्यापारी वर्ग नष्ट हो गए।
भारत में निर्मित सामानों पर निर्यात शुल्क अधिक रखा गया जबकि आयात कर कम रखा।
भारत में अंग्रेजों के शासन का मुख्य आधार धार्मिक शोषण था।
खेती की उन्नति पर ध्यान नहीं दिया गया समय-समय पर अकाल पड़ता रहा 1837 - 38 में सूखे के कारण आर्थिक संकट पैदा हो गया 1843 -44 में दोआब क्षेत्र में बाढ़ आई उनको दिया गया पुरस्कार अथवा जमीन वापस छीन ली गई यह सब मुख्य कारण था जो 1857 में आग की तरह बाहर आया।
सैन्य कारण
18 सो 57 के विद्रोह के कर्णधार सैनिक रहे इसलिए इसे सैनिक विद्रोह भी कहा जाता है।
कंपनी के अधिकारी सेना में भारतीय सैनिक के साथ मतभेद का व्यवहार करते थे सेना के उच्च पदों पर केवल अंग्रेज ह नियुक्त किए जाते थे।
अवध को अंग्रेजी राज्य में मिलाए जाने पर सैनिक असंतुष्ट थे बंगाल की सेना में अधिकतर अवध निवासी थे जो अवध पर ब्रिटिश शासन नहीं देखना चाहते थे।
प्रथम अफगान युद्ध में अंग्रेजी सेना अफ़गानों से हार गई जिससे भारतीय सैनिक भी अंग्रेजों को हराने की आशा करने लगे।
सन 18 सो 56 में पुरानी बंदूकों को हटाकर नवीन एनफील्ड राइफल को सेना में शामिल किया इसके लिए नए प्रकार के कारतूस ओं का प्रयोग के लिए दिया गया इससे दांत से काटकर खोलना पड़ता था उस समय यह  खबर जोरों पर थी कि नए कारतूस में चर्बी का प्रयोग किया गया है जिसे हिंदू और मुसलमान दोनों भड़क गए और कारतूस को प्रयोग करने से मना किया यह घटना सैनिक विद्रोह का मुख्य कारण था।
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण
18 सो 57 का विद्रोह एक घटना से प्रारंभ हुआ जो इस प्रकार है।
डम डम छावनी का एक सुनसान स्थान एक व्यक्ति एक सैनिक से पीने का पानी मांगता है सैनिक पानी देने से इंकार कर देता है जो जाति का ब्राह्मण है निम्न जाति का पानी मांगने वाला वह व्यक्ति डम डम कारतूस फैक्ट्री में कार्यरत था कारतूस निर्माण की बारे में उसे अच्छी जानकारी थी अतः वह ब्राह्मण सैनिक से व्यंग से बोलता है तुम्हारा जाती दंभ अब शीघ्र ही भंग हो जाएगा क्योंकि अंग्रेज जिनका दूसरों का प्रयोग के लिए देंगे उसमें सूअर और गाय की चर्बी मिली होगी।
सैनिक ने उसकी बात में सत्यता पाई और यह खबर आग की तरह फैल गई यह सूचना बैरकपुर छावनी में पहुंची उनमें से भी रेजिमेंट के सैनिक ने चर्बी युक्त कारतूस ओं के प्रयोग से इंकार कर दिया 19वीं रेजिमेंट समाप्त कर दी गई।
34 वी रेजीमेंट के एक सैनिक मंगल पांडे ने अपने सार्जेंट मेजर की गोली मारकर हत्या कर दी और सैनिकों को अपने धर्म की रक्षा के लिए ललकारा मंगल पांडे को फांसी दे दी गई और 34 रेजीमेंट भंग कर दी गई।
अट्ठारह सौ सत्तावन अप्रैल 24 को मेरठ छावनी के पचासी सैनिकों ने उसका दूसरों का प्रयोग करने से मना कर दिया इस अपराध में उन्हें 10 वर्ष की सश्रम कैद हुई।
10 मई अट्ठारह सौ सत्तावन को विद्रोह ने उग्र रूप धारण किया सभी बंदी सैनिकों को छुड़ाकर सैनिक प्रात ही दिल्ली पहुंच गए जहां मुगल शासक बहादुर शाह जफर के नाम से सन सन 18 57 का विद्रोह शुरू हुआ।

विद्रोह के केंद्र
दिल्ली बहादुर शाह जफर जनरल वक्त का सैन्य नेतृत्व
लखनऊ बेगम हजरत महल इन्होंने अपने अल्प व्यक्त पुत्र वर्जित कार्य के नाम पर शासन किया।
कानपुर नाना साहब (घोटू पंत) अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे कंपनी ने बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उनकी पेंशन बंद कर दी इस विद्रोह में उन्हें तात्या टोपे (रामचंद्र पांडुरंग )की सहायता मिली।
झांसी एवं ग्वालियर
झांसी में नेतृत्व यहां के राजा गंगा राव की विधवा रानी लक्ष्मीबाई कर रही थी गंगाराम की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी के अभाव में डलहौजी ने हड़प नीति के तहत अट्ठारह सौ 53 में ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था कानपुर ने के पतन के बाद तात्या टोपे भी झांसी की रानी से जा मिले अंग्रेजो की तरफ से जनरल यूरोप तथा रानी लक्ष्मीबाई के मध्य 8 दिनों तक युद्ध चला झांसी की सुरक्षा को असंभव समझकर रानी कालपी पहुंची यूरज ने 3 अप्रैल 1856 को झांसी पर अधिकार कर लिया 22 मई को उनका को उनका कालपी पर भी अधिकार हो गया इसलिए रानी ने ग्वालियर की तरफ प्रस्थान किया जहां का राजा सिंधिया अंग्रेज राज भक्त था किंतु ग्वालियर की सेना विद्रोहियों के साथ मिल गई जिनकी सहायता से रानी ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया ग्वालियर दुर्ग की रक्षा करते हुए 17 जून अट्ठारह सौ 58 को रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई।
नोट तात्याा टोपे को सिंधिया के सामंत मानसिंह ने अप्रैैैल 1859 में धोखेेेे से अंग्रेजों को सौंप दिया और इन्हें ग्वालियर में फांसी दे दी गई।
बिहार बिहार केेे प्रमुख ने थे शाहबाद जिले के जगदीशपुर केेे 80 वर्षीय कुंवर सिंह थे 1857 की विद्रो मैं यही एक ऐसे वीर थे जिन्होंने 

बरेली खान बहादुर खान
इलाहाबाद लियाकत अली 
फैजाबाद मौलवीी मोहम्म अल्लाह 
हरियाणा राव तुलाााा राम

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